देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन से जुड़े बहुत से किस्से आपने सुने होंगे। मगर ऐसा बहुत कुछ है जो आपको शायद नहीं पता होगा।
डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम एक वैज्ञानिक होने के साथ मनोवैज्ञानिक भी थे । उनको चेहरा पढ़ना भी आता था। वो किसका भी चेहरा पढ़कर उसके बारे में बता देते थे।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम। उस शख्सियत का नाम था,जो जीवनभर ज्ञान का भूखा रहा और जिसमें दूसरों के भीतर भी ज्ञान की भूख जगाने की अद्भुत क्षमता थी। जिसने हमेशा विकास की बात की।
फिर वह डेवलेपमेंट समाज का हो या फिर व्यक्ति का। इतना ही नहीं डॉ.कलाम जब भी लखनऊ आए तो उन्होंने बच्चों को सवाल पूछने का संकल्प दिलाया तो युवाओं और बुजुर्गों को घर में लाइब्रेरी बनाने का। रविवार को गंजिंग कार्निवाल की शाम डॉ.कलाम की स्मृतियों में डूबी रही।
एक शाम डॉ. अब्दुल कलाम के नाम’ शीर्षक से आयोजित गंजिंग कार्निवाल में डॉ. कलाम के साथ खासा वक्त बिताने वाले उनके विशेष कार्याधिकारी सृजन पाल सिंह ने श्रद्घांजलि अर्पित करने के बाद कलाम से जुड़े जो अनुभव सुनाए,उसे सुन दर्शकों की आंखें नम हो गईं।
कलाम से पहली मुलाकात से लेकर अंतिम समय तक की तमाम यादें उन्होंने साझा कीं। सृजन पाल सिंह ने बताया कि शिलॉन्ग में जब वह डॉ.कलाम के सूट में माइक लगा रहे थे तो उन्होंने पूछा ‘फनी गॉय हाउ आर यू’,जिस पर मैंने जवाब दिया ‘सर ऑल इज वेल’।
फिर वह छात्रों की ओर मुड़े... और बोले ‘आज हम कुछ नया सीखेंगे’और इतना कहते ही पीछे की ओर गिर पड़े। पूरे सभागार में सन्नाटा पसर गया।
सृजन पाल सिंह ने बताया कि डॉ.कलाम हर किसी से पूछते थे कि जीवन में किस क्षेत्र में पहचान बनाने की ख्वाहिश रखते हैं,जिससे सफलता हासिल कर सकें।
10 जुलाई को डॉ.कलाम अपने घर के बगीचे में घूम रहे थे तो मैंने भी डॉ. कलाम से यह सवाल पूछ लिया। उन्होंने जवाब दिया कि ‘मैं चाहता हूं कि दुनिया मुझे शिक्षक के रूप में जाने’फिर बोले कि मेरे हिसाब से दुनिया को अलविदा कहने के सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि‘व्यक्ति सीधा खड़ा हो,जूते पहना हो और अपनी पसंद का कार्य कर रहा हो’। यह सुनाते ही सृजन पाल की आंखें नम हो गईं।
सृजन पाल सिंह ने बताया कि डॉ.कलाम हमेशा देश के विकास,गांवों में शिक्षा का प्रसार,चिकित्सा व्यवस्था में सुधार जैसे मामलों पर गहनता से बातें करते थे। बताया कि वह जब किसी से मिलते थे तो उसे सलाह देते कि वह हर दिन अपनी मां के चेहरे पर एक मुस्कान जरूर दें।
आस्था अस्पताल के डॉ.अभिषेक शुक्ल ने बताया कि कई बार मुलाकात हुई डॉ.कलाम से,लेकिन राजभवन की मुलाकात आज भी याद है। वहां मैंने वृद्धजनों की समस्याओं को लेकर उनसे बातचीत की,जिस पर डॉ.कलाम ने कहा कि समस्या संयुक्त परिवारों के खत्म होने की है।
न्यूक्लियर फैमिली में बुजुर्गों की देखरेख नहीं हो पाती। उनके सुझाव से वृद्धों के लिए काम करने में काफी सहायता मिली। डॉ. कलाम की कमी हमेशा खलेगी।
जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया कि एयरपोर्ट की लॉबी में डॉ.अब्दुल कलाम से 40 मिनट की मुलाकात हुई और इस दौरान उन्हें विकास के अलावा किसी और मुद्दे पर बात नहीं की।
उनका मानना था कि गांवों के विकास पर फोकस होना चाहिए। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को दुरुस्त करवाना सरकारों की प्राथमिकता रहनी चाहिए। डॉ.कलाम की सोच साधारण रहन-सहन के साथ सामाजिक रूप से उत्पादकता देने वाली थी।
नवयुग कन्या महाविद्यालय की डॉ.सृष्टि श्रीवास्तव कहती हैं कि 2013 के पुस्तक मेले में डॉ.कलाम से मिलने का मौका मिला। वे महान दार्शनिक के रूप में पहचाने जाते हैं, लेकिन वे एक मनोवैज्ञानिक भी थे।
उनमें मनोवैज्ञानिक के चारों प्रमुख गुण थे। सकारात्मक रवैया,चेहरा पढ़ लेना, कम्युनिकेशन और मोटिवेशनल स्किल्स। कलाम के जीवन के अंतिम क्षणों की इन बातों को सुनाते ही ओएसडी की आंखे नम हो गई तो कार्निवाल का माहौल गमगीन हो गया।
कलाम की स्मृतियों से रूबरू होने के लिए सैकड़ों की तादात में दर्शक पहुंचे थे। इस मौके पर साउथ सिटी स्थित मिलेनियम स्कूल के बच्चों सानिया लखनपाल,ज्योतिशेखर,मेहुल रस्तोगी ने 2010 में डॉ.अब्दुल कलाम से स्कूल में हुई मुलाकात के अनुभव साझा किए।
मेहुल ने बताया कि स्पेस साइंस पर पावर प्वॉइंट प्रेजेंटेशन बनाया था,जिसकी कलाम सर ने काफी तारीफ की थी और उससे जुड़े सवाल भी पूछे थे।
डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम एक वैज्ञानिक होने के साथ मनोवैज्ञानिक भी थे । उनको चेहरा पढ़ना भी आता था। वो किसका भी चेहरा पढ़कर उसके बारे में बता देते थे।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम। उस शख्सियत का नाम था,जो जीवनभर ज्ञान का भूखा रहा और जिसमें दूसरों के भीतर भी ज्ञान की भूख जगाने की अद्भुत क्षमता थी। जिसने हमेशा विकास की बात की।
फिर वह डेवलेपमेंट समाज का हो या फिर व्यक्ति का। इतना ही नहीं डॉ.कलाम जब भी लखनऊ आए तो उन्होंने बच्चों को सवाल पूछने का संकल्प दिलाया तो युवाओं और बुजुर्गों को घर में लाइब्रेरी बनाने का। रविवार को गंजिंग कार्निवाल की शाम डॉ.कलाम की स्मृतियों में डूबी रही।
एक शाम डॉ. अब्दुल कलाम के नाम’ शीर्षक से आयोजित गंजिंग कार्निवाल में डॉ. कलाम के साथ खासा वक्त बिताने वाले उनके विशेष कार्याधिकारी सृजन पाल सिंह ने श्रद्घांजलि अर्पित करने के बाद कलाम से जुड़े जो अनुभव सुनाए,उसे सुन दर्शकों की आंखें नम हो गईं।
कलाम से पहली मुलाकात से लेकर अंतिम समय तक की तमाम यादें उन्होंने साझा कीं। सृजन पाल सिंह ने बताया कि शिलॉन्ग में जब वह डॉ.कलाम के सूट में माइक लगा रहे थे तो उन्होंने पूछा ‘फनी गॉय हाउ आर यू’,जिस पर मैंने जवाब दिया ‘सर ऑल इज वेल’।
फिर वह छात्रों की ओर मुड़े... और बोले ‘आज हम कुछ नया सीखेंगे’और इतना कहते ही पीछे की ओर गिर पड़े। पूरे सभागार में सन्नाटा पसर गया।
सृजन पाल सिंह ने बताया कि डॉ.कलाम हर किसी से पूछते थे कि जीवन में किस क्षेत्र में पहचान बनाने की ख्वाहिश रखते हैं,जिससे सफलता हासिल कर सकें।
10 जुलाई को डॉ.कलाम अपने घर के बगीचे में घूम रहे थे तो मैंने भी डॉ. कलाम से यह सवाल पूछ लिया। उन्होंने जवाब दिया कि ‘मैं चाहता हूं कि दुनिया मुझे शिक्षक के रूप में जाने’फिर बोले कि मेरे हिसाब से दुनिया को अलविदा कहने के सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि‘व्यक्ति सीधा खड़ा हो,जूते पहना हो और अपनी पसंद का कार्य कर रहा हो’। यह सुनाते ही सृजन पाल की आंखें नम हो गईं।
सृजन पाल सिंह ने बताया कि डॉ.कलाम हमेशा देश के विकास,गांवों में शिक्षा का प्रसार,चिकित्सा व्यवस्था में सुधार जैसे मामलों पर गहनता से बातें करते थे। बताया कि वह जब किसी से मिलते थे तो उसे सलाह देते कि वह हर दिन अपनी मां के चेहरे पर एक मुस्कान जरूर दें।
आस्था अस्पताल के डॉ.अभिषेक शुक्ल ने बताया कि कई बार मुलाकात हुई डॉ.कलाम से,लेकिन राजभवन की मुलाकात आज भी याद है। वहां मैंने वृद्धजनों की समस्याओं को लेकर उनसे बातचीत की,जिस पर डॉ.कलाम ने कहा कि समस्या संयुक्त परिवारों के खत्म होने की है।
न्यूक्लियर फैमिली में बुजुर्गों की देखरेख नहीं हो पाती। उनके सुझाव से वृद्धों के लिए काम करने में काफी सहायता मिली। डॉ. कलाम की कमी हमेशा खलेगी।
जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया कि एयरपोर्ट की लॉबी में डॉ.अब्दुल कलाम से 40 मिनट की मुलाकात हुई और इस दौरान उन्हें विकास के अलावा किसी और मुद्दे पर बात नहीं की।
उनका मानना था कि गांवों के विकास पर फोकस होना चाहिए। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को दुरुस्त करवाना सरकारों की प्राथमिकता रहनी चाहिए। डॉ.कलाम की सोच साधारण रहन-सहन के साथ सामाजिक रूप से उत्पादकता देने वाली थी।
नवयुग कन्या महाविद्यालय की डॉ.सृष्टि श्रीवास्तव कहती हैं कि 2013 के पुस्तक मेले में डॉ.कलाम से मिलने का मौका मिला। वे महान दार्शनिक के रूप में पहचाने जाते हैं, लेकिन वे एक मनोवैज्ञानिक भी थे।
उनमें मनोवैज्ञानिक के चारों प्रमुख गुण थे। सकारात्मक रवैया,चेहरा पढ़ लेना, कम्युनिकेशन और मोटिवेशनल स्किल्स। कलाम के जीवन के अंतिम क्षणों की इन बातों को सुनाते ही ओएसडी की आंखे नम हो गई तो कार्निवाल का माहौल गमगीन हो गया।
कलाम की स्मृतियों से रूबरू होने के लिए सैकड़ों की तादात में दर्शक पहुंचे थे। इस मौके पर साउथ सिटी स्थित मिलेनियम स्कूल के बच्चों सानिया लखनपाल,ज्योतिशेखर,मेहुल रस्तोगी ने 2010 में डॉ.अब्दुल कलाम से स्कूल में हुई मुलाकात के अनुभव साझा किए।
मेहुल ने बताया कि स्पेस साइंस पर पावर प्वॉइंट प्रेजेंटेशन बनाया था,जिसकी कलाम सर ने काफी तारीफ की थी और उससे जुड़े सवाल भी पूछे थे।
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