12 साल की उम्र में बच्चों को ठीक से कपड़े पहनने की सुध नहीं रहती। लेकिन गौर के पास रहने वाला राहुल चौधरी इस उम्र में कितनी बड़ी जिम्मेदारी उठा रहा है ये तो शायद वो खुद नहीं जानता। राहुल के माता-पिता, चाचा-चाची, बुआ और दादी सभी दहेज हत्या के आरोप में जेल में हैं। इसके बाद से वह दो सगी छोटी बहनों और चाचा के दो बच्चों की जिम्मेदारी उसके सिर आ गई है। जेल में बंद परिवार के बड़े सदस्यों के लिए जरूरी सामान के साथ चार छोटे भाई-बहनों की परवरिश के लिए राहुल ने पढ़ाई बंद कर बूट पॉलिश शुरू कर दी।
नन्हीं सी उम्र में जवाबदारियों का पहाड़ उठा रहे राहुल की कहानी जितनी दर्द भरी है, उतनी समाज के लिए प्रेरणा देने वाली। राहुल से जब नईदुनिया ने मुलाकात की तो उसने सारी दास्तां सुनाने के बाद मुस्कुराते हुए फिल्मी डॉयलॉग बोला 'साहब अब थप्पड़ से नहीं प्यार से डर लगने लगा है।"
गौर के नीमखेड़ा खमरिया गांव में रहने वाले राहुल चौधरी ने बताया कि 7 मई 2014 को उसके सबसे छोटे चाचा राजेश की पत्नी प्रीति की जलने के कारण मौत हो गई थी। चाची के ससुरालवालों ने उसके पिता अमर, मां ऊषा, मंझले चाचा इमरत, चाची निशा, बुआ मुन्न्ी और दादी उजियारी बाई के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज करा दिया। इसके बाद से सभी लोग जेल में बंद हैं।
पहले घबराया फिर हिम्मत दिखाई
राहुल के अनुसार परिवार वालों के जेल जाने के बाद उसकी दो छोटी सगी बहनें रागिनी (8 वर्ष), सपना (6 वर्ष) के अलावा चाचा इमरत की बेटी चांदनी (9 वर्ष) और बेटा सागर (5 वर्ष) की परवरिश की जिम्मेदारी उसके सिर पर आ गई। राहुल के अनुसार शुरू में कुछ गांव वालों ने मदद की, लेकिन बाद में सभी लोग उससे मुंह चुराने लगे।
पहले वह गांव की एक होटल में काम करता था, जहां उसे 40 रुपए दिन मिलते थे, लेकिन परिवार पालने और जेल में बंद माता-पिता को सामान पहुंचाने के लिए उसे कर्जा लेना पड़ता था। करीब 7 माह पूर्व उसने अपने पिता की रेलवे स्टेशन के समीप बूट पॉलिश की दुकान खोली और वहीं पर काम शुरू कर दिया। राहुल के अनुसार हर दिन वह 100 से 150 रुपए कमा लेता है, जिससे घर के खर्चे के अलावा हर माह एक हजार से 15 सौ रुपए का सामान जेल में बंद परिवार वालों को पहुंचा देता है।
ऐसा रहता है रूटीन
राहुल के अनुसार सुबह वह 6 बजे उठता है। बहन चांदनी, रागिनी और सपना के साथ मिलकर खाना बनाने के साथ घर का पूरा काम निपटाता है। 10 बजे सभी भाई-बहन को वह स्कूल छोड़कर बस से एम्पायर तिराहे तक पहुंचता है और शाम 5 बजे तक बूट पॉलिश की दुकान लगाता है। शाम को 6 बजे घर पहुंचकर फिर से भाई-बहनों के साथ खाना-पीना करता है। हर 15 दिन में दुकान बंद करके वह सभी बच्चों के साथ जेल में परिजनों से मुलाकात भी करने जाता है।
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